Monday, April 1, 2019

Pitruvachanam: 31 march 2016

हरि ॐ दि. 31/03/2016

बापूंचे पितृवचन

जिन लोगों ने तिसरे महायुध्द पर लिखी किताब पढी है, फिर से पढने कि कोशिश किजिए! जो आज चल रहा है,
प्रत्यक्ष पढतें होंगे, तो हमें पता चल रहा है, कि क्या हो रहा है।
इस आनेवाले कल में, जो श्रध्दावान है; उनकी रक्षा 108% होगी। There is no doubt about it. (इसमें कोई शक नहीं)

हमें जानना चाहिये, की इस काल में हमारे पास, "बापू पहले जो चेन लेकर घुम रहा था; चाबी थी, उसमें! अभी हाथ में मोबाईल होता है। यह जमाना है, मोबाईल.. नेट का! ट्विटर, फेसबुक, व्हॉटस् अॅप और ब्लॉग; ये चार स्तंभ है! आगे जाकर नाम चेंज हो जायेंगे; लेकिन यह चार प्रमुख स्तंभ चलते ही रहने वाले है।
स्कुल में.. नोटबुक्स बंद हो जायेंगे!
जमाना बदल रहा है। कॉमर्स.. याने.. जो अर्थ है वह सब ई-कॉमर्स पर है। बँक के भी व्यवहार 'ऑन-लाईन' होते है। इसमें थोडी दिलचस्पी लो, और सब लोग सिखों!

It is the World of Connectivity. इस जमाने में एक दुसरे के साथ connected (जुङे) रहना! सिर्फ एक इन्सान और दुसरे इन्सान के साथ ही नहीं; तो हमारा गाँव, दुसरा गाँव! हमारी city (शहर) और दुसरी city! हमारा देश और दुसरा देश; इस तरह!!
लोग मोबाईल पर सिर्फ खेलते रहते है, या पढते रहते है!

यह समय जो मिला है, उसका अच्छे से इस्तेमाल करना है।
जिवन में याद रखना है, कि 'हमें काल से पिछे नहीं रहना' काल के पास कभी क्षमा नहीं है। क्योंकी काल, भगवान नहीं है! 'काल' is just a mechanism.. It's a Software created by Parmatma!
इसलिये उस software (पध्दती) के नियम हमें पालन करने ही पडतें है। इन्सानों के लिये ही नियम होते है! जानवरों को बुध्दी नहीं है! जो भी इन्सान समय के पिछे रहता है, उसे 'काल' क्षमा नहीं करता!
मृत्यू सिर्फ शरीर कि नहीं होती! मृत्यू; मन की, भावनाओं की भी होती है! रिश्तों की भी होती है! ये हर तरीके का मृत्यू, सिर्फ 'काल' के कारण होता है!

कॉम्प्युटर जिन्हे नहीं आयेगा, पाँच साल के बाद उनकी हालत ऐसी 👆🏼हो जायेगी! आज जो भी 30 से उपर है, सभी को कुछ ना कुछ आना चाहिये। अभी तो जाग जाओ! हमको कुछ आता नहीं है; ऐसी शर्म मत करो, तभी आप सिख सकोगे!
इस नये युग का स्विकार बडे प्यार से करो!

और, उसी के साथ.. मशिन का इस्तेमाल इतना करो, कि ये तुम पर 'हावी' ना हो जाये! यह addiction (व्यसन, लत) नहीं होना चाहिए!

जब भी नेट नहीं है, तो communicate (संपर्क/संवाद) कैसे करेंगे?
जब भी महा-तुफान आता है, तब सब बंद होता है! मोबाईल, लँड लाईन फोन, वायफाय!
तभी सिर्फ 'हॅम रेडियो' चलता है। इस हॅम रेडियो के बहोत सारे क्लब है, विश्व में!
जो भी हॅम का युनिट खरीदकर हॅम रेडियो के साथ जुडना चाहते है! वो श्रीधर सरदेसाई और महेश आठले, डॉ.निनाद घोलकर; इनके संपर्क में रहकर हॅम का विस्तार करना है।
कुछ भी ना हो, तो भी अॅडमिनिस्ट्रेशन के जरिये; हॅम से सहायता हासिल कर सकतें है। इसके दुसरे उपयोग भी है। ये हॅम रेडियो दो प्रकार के होते है! It's a hobby! ये सबके लिये open invitation (खुला निमंत्रण) है।

दुसरी चीज जो है, वो डाऊनलोड करनी है, वो है 'FIRECHAT' (फायरचॅट)
शंतनुसिंह नातू, फायर चॅट के बारे में हमें बतायेंगे।
शंतनुसिंह:- मोबाईल नेटवर्क जाम होता है, तभी हम सोशल मिडिया के अॅप्स (व्हॉटस् अॅप, फेसबुक, ट्विटर इ.) इस्तेमाल नहीं कर पाते! अगर इंटरनेट भी हमारे पास नहीं है, तो भी; ये अॅप हमें connected (जुडे) रख सकता है। एक दुसरे के साथ मॅसेज या फोटो, शेयर कर सकते है! इस अॅप का नाम है, 'फायर चॅट' (FIRECHAT)
यह एक मेसेजिंग अॅप है! इंटरनेट के साथ भी चलता है, और इंटरनेट बंद हो जाता है; तब भी चलता है।
इन users के अॅप्स में कनेक्शन होता है।
जितने ज्यादा लोग इसे इस्तेमाल करेंगे, उतना strong (मजबुत) बनता है। कोई disaster (आपत्ती) अगर आ जाता है, तो सबसे पहले उसका असर मोबाईल पर पडता है। हम firechat के नेटवर्क के माध्यम से connect (जुड) हो सकते है।  गृप मॅसेजेस् और one to one मॅसेजेस् भी होते है।
   गृप मॅसेज, public (सार्वजनिक) होते है! सबको दिखते है! फेसबुक की तरह!
Private msg (व्यक्तिगत मॅसेज) की सुविधा है; Thru one to one
एक दुसरे को follow भी कर सकते है। दो साल में इसके तकरीबन 60 लाख users (उपभोक्ता) पुरी दुनिया में है! और इस 60 लाख में से 10 लाख लोग, भारत से है"।

हरि ॐ
फायरचॅट में अपने आप connect हो (जुड) जाते है। आपके आसपास में किसी के पास FIRECHAT है, पर हम उसे पहचानते नहीं है; फिर भी आपको उसका use (उपयोग) हो सकता है।
हमारी खुद की Messaging System (संदेश प्रणाली) संदेश वाहक यंत्रणा; कितनी विशाल हो जायेगी। कोई श्रध्दावान अकेला नहीं होगा।

Pascal's Wager
छोटासा टेबल है। Wager (वॅगर) याने bet! (पैज, शर्त) Belief and Astheism.. (बापू ने टेबल के बारे में समझाया)
याने 'आस्तिक' और 'नास्तिक' 
अगर आप आस्तिक है, you Eternal Joy!  आपके जिवन में सुख ही सुख!

If you are wrong (अगर आप गलत है) तो disadvantage (हानी, नुकसान) कुछ भी नहीं होगा। लेकिन अगर आप नास्तिक है, और सिध्द हुआ; कि भगवान नहीं है! तो कुछ फरक नहीं पडता! लेकिन अगर यह गलत निकला, तो Eternal (सनातन, शाश्वत) suffering...
सिर्फ दुख और दर्द रहेगा। मराठीत:-  जर तुम्ही 'आस्तिक' आहात, आणि हे सिध्द झालं कि देव आहे! तर आयुष्यभर फायदाच फायदा आहे.  जर असं prove (सिध्द) झालं कि, देव नाही आहे; तर काही मोठं नुकसान नाही होणार!

पण आपण 'नास्तिक' आहोत; आणि आपलं म्हणणं खरं ठरलं; कि देव नाही आहे! तर फरक काहीच नाही पडणार! पण जर तुम्ही चुकलात, कि 'आई'चीच सत्ता चालते; हे खरं निघालं, तर Eternal Suffering...
देवाला अमान्य केल्यामुळे जे काही व्हायचं ते होणारंच आहे

In English:- If you are believer in God, & you are right! Then you have Eternal Joy! If you are 'Atheist' & if you are right; Nothing will happen! But if you are wrong.. then you will have Eternal Suffering...

ये हमारे पर्स में रखना, और इसे देखें! Don't doubt God! (भगवान पर शक ना करना)

मैं 'आस्तिक' हूँ और मैं आस्तिक रहुँगा! मेरी श्रध्दा है कि, 'Trivikram is the caretaker' कोई माने या ना माने!

दुर्गा नाम का मतलब ही क्या है? How will you translate 'durga'? It means 'invincible' (अजिंक्य, अभेद्य)
It means... too powerful to be defeated...
ये दुर्गा नाम का meaning (अर्थ) है।  Read this Table!  उसके उपर दुर्गा लिखिए!  बात खतम...

Pascal's Wager, we will always keep it with us atleast in our Brain.. (हमें हमेशा अपने पास रखना ही है! कम-से-कम दिमाग में)
जिसको कोई भी पराभुत नहीं कर सकता.. That is our Grandmother!  दादी का पल्लू पकडेंगे.. पिताजी के पिछे चलेंगे!
ये आपकी दादी ने जिसे 'तुडवाया' था; उसकी पुजा करोगे?

कोई सिर्फ बैठा हुआ मुझे अच्छा नहीं लगता! काम करते रहना!
Improve your English! (आपकी अंग्रेजी 'सुधारो!)
'काल' ये भगवान के हाथ का instrument (औजार) है। हॅम क्लब में शामिल होना भी अध्यात्म है।
FIRECHAT (फायरचॅट) डाऊनलोड करना भी अध्यात्म है।
Let these hands work for yourself! Pray to her! Problems is yours! Please give me the Energy wherever I am weak..
Don't say please, to 'dad'  Dad I Love you & I want a Little More Energy!
You will pray and you will get it! Firechat, ये पवित्र अग्नी है! इससे disaster (आपत्ती) उत्पन्न नहीं होगा। Disaster ही नही, एक बार हम लोग 'हॅम' और 'फायरचॅट' पर आयेंगे, तो हम हमारे देश को, धर्म को; कहाँ से कहाँ लेकर जायेंगे। हमारा विकास अपने आप, उसकी दोगुनी गती से होनेवाला है! अपने आप!!

Sunday, March 17, 2019

Pitruvachan 16march panchamukh hanumatkavacham

हरि ॐ दि. 16/03/2017
बापूंचे पितृवचन

ह्या कवचामधे एक शब्द येतो. *श्री पंचमुख हनुमत विराट हनुमान देवता* विराट याने क्या?

विराट का मतलब क्या है! 'विराट' ये उपाधी; किसलिये और कहाँ दी जाती है?

विराट याने ऐसी कोई चीज, जितनी चाहें, खुद चाहें, स्वयं कि इच्छा से; जितनी चाहें, उतनी बढ सकती है! और किस दिशा में बढे य़ा ना बढे; ये भी उसकी स्वयं कि मर्जी से होता है!

इसलिये विराट को दिशा का; सीमा का बंधन नहीं होता!

जिसकी खुद अपनी सीमा होती है, वो 'विराट' होता है।

वो भी कैसी! कोई भी बुराई कभी विराट नहीं हो सकती! *राज* तो माँ चण्डिका का ही चलता है।

जो विराट है, वो सिर्फ 'पवित्र' ही होता है। जो पुर्ण रुप से, निष्कंलक रुप से पवित्र होता है!

ॐकार को जन्म देते समय, जो ताकत होती है; वो प्रसुती के लिये वास्तव में लायी जाती है। वो विराट नहीं कही जाती!

इस विश्व के उत्पन्न के लिये जितनी शक्ती आवश्यक होती है! उसके बाद जो रह जाती है; वह 'विराट' है! चाहें जितने विश्व और भी उत्पन्न कर सकती है।

यह पंचमुख हनुमान विराट है। याने इनका स्वरुप कैसा है! माँ कि वो शक्ती; जो सारे विश्व उत्पन्न कर के भी, रहती है!

ये विराट शक्ती, विश्व चलाने के लिये; संपुर्ण रुप से हर पल कार्यरत है।

माँ कि जो शक्ती विश्व में आ गयी, वो आ गयी है! गाडी बन गयी है! लेकिन उड चलने के लिये जो इंधन है;

हनुमान जी सारे के सारे विश्व को पॉवर सप्लाय करते है। इसलिये विराट कहा गया है।

ॐ श्री हनुमन्ताय
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपिस तिहूँ लोक उजागर

तिनो लोक! उसे प्रेरित करने वाली शक्ती विराट है।

जिनका विराट स्वरुप है; फिर भी हाथ जोडकर बैठे है! याने 'हमें हमेशा नतमस्तक होना चाहिए! मेरे जीवन का हर पल भगवान का है! ये हर रोज भगवान को बताना चाहिए! कम से कम 'दो बार'

हम जब भी भगवान को बोलते है! याने हममें जो भगवान का अंश है, उसे बताते है। हमारा मन जो है, वो बहुत चंचल होता है।

हम कुछ सोचते है! और दो मिनट में भुल जातें है। हमारी याददाश्त इतनी कमजोर होने का कारण! हमारा मन चंचल है।

इसलिए हमें बार बार बताते रहना है।

सुंदरकाण्ड कम से कम *साल में एक बार तो पढिये*

वहाँ क्या सिख पाते है! रामचंद्र और सीता, हनुमान जी को 'तात' बोलते है।

जो घर में श्रेष्ठ व्यक्ती है; उसे 'तात' कहते है।

ये परमात्मा भी उसे 'तात' कहते है! इतना वो विराट है। जब भगवान का स्वरुप, *अवतार* हो जाता है; तो वो भगवान का स्वरुप हमेशा कार्यरत होता है।

त्रिविक्रम 'कारणरुप' होता है!

राम, कृष्ण अपने मुल रुप में विराट है ही! लेकिन वसुंधरा पर कुछ कारण से आते है।

त्रिविक्रम और हनुमान जी; किसी रुप या अवतार में भी आयें; तो भी विराट ही रहते है

उनका कार्य भी विराट ही है। ये हनुमान जी, जब हनुमान के रुप में प्रगट हुए।

ये *सतयुग में भी* आता है! त्रेता, द्वापार में भी आता है! कलयुग में तो *है ही!*

वो पंचमुख हनुमान ही है! उनका विराट रुप, हमारे आकलन शक्ती के बस में होता है!

इस कवच को दिव्यता देनेवाला 'विराट हनुमान' है

पंचमुख याने *हर व्यक्ती के पंचप्राण, पंचेंद्रिय, कर्मेंद्रिय* इन सभी को सामर्थ्य देनेवाले है!

गलत सामर्थ्य नहीं, आपके लिये जितना आवश्यक है? उतना ही देनेवाला है।

किस दिशा में उसका बंधन नहीं है।

ये सबसे सुरक्षित है! हमारा बाळ, अगर गलत दिशा में गया, तो प्रॉब्लेम हो सकता है! गलत नहीं बन सकते! वो *विराट तत्व है*

ये विराटता, हमारे लिए वरदान बन के आती है। किसी भी इन्सान को; जो वरदान आता है; वो अगर शुध्द भक्ती या तपश्चर्या के लिए आया; तो उसमें अंतर होता है।

शुध्द भक्ती के लिये आते है, वो हनुमान जी का अंश होता है!

राम दुआरें, तुम रखवारें

परमात्मा का कौनसा भी अवतार क्यों ना हो! हर इन्सान तक पहुँचनेवाला कार्य, हनुमान करते है! इसलिए विराट है!

संरक्षण करनेवाला! माँ के गर्भ में होता है, वैसा! सारी बुराईयों से संरक्षण! और सारा भरण पोषण!

वो कवच!

इसलिय़े हनुमान जी को *विश्व योगिराज* भी कहते है।

हम पंचमुख हनुमान जी का कवच कहते है।

-हीं बीजं
याने इस कवच का बीज जो है, वो '-हीं' याने माँ का प्रणव! ये लज्जा बीज है।

ॐकार का जो महत्व है, वो ही इस -हीं का महत्व

लज्जा बीज याने ये गुढ बीज है। सारे Secrets of the World गुप्त वार्ता, तंत्र याने Techniques, सारे समिकरण, सुत्र जिसमें है वो ये '-हीं बीज'

इस कवच का बीज भी -हीं है! जिस कवच का बीज ही -हीम् है वो हमारे लिए क्या कुछ नहीं कर सकता!

क्रैम् अस्त्राय फट्
इति दिग्बंध:

ये *दिग्बंध*
ये *फट्* भी बीज मंत्र है। 'फट्' जो है, किसी भी चीज का तुरंत त्याग करने के लिए, विनाश करने के लिए जो आवाहन किया जाता है, उसका बीज है 'फट्'
ये विनाशकारी बीज है! स्वेच्छा के अनुसार है। जिनको मारना है; वो ही मरेंगे!

ये विध्वंसक शक्ती भी हनुमान जी को Specific है! Apt है!

अस्त्राय फट् इति दिग्बंध:
किसी का अस्त्र हम पर आने से पहले उसका विनाश हो!

अगर हम किसी गलत रास्ते पर जायें, तो उसका भी विनाश हो!

हम हमारे खुद के जीवन में झाँकेंगे, तो देखेंगे... हम गुस्से में कितने गलत शब्द बोल देते है!

ये जो हम हमारे जिंदगी में गलत कदम उठाते है; ये गलत अस्त्र भी! जो हमारी वजह से 'निकलता' है! उसके भी 'निकलने के' तुरंत बाद नाश हो जाए! यही दिग्बंध है इस कवच का! याने *आपको पवित्र सीमा में ही रखने वाला*

जो चाहता है, मेरे हाथ से गलती ना हो; तो *क्रैम् अस्त्राय फट् स्वाहा* आवश्यक है।

क्रैम् बीज जो है, इसे युध्द बीज कहते है। हमारे मन में खुद के साथ युध्द चलता है! घर में भी! सारे युध्दों का बीज क्रैम् है। ये युध्द बीज है!
लेकिन, किसी भी युध्द में जो सच्चे श्रध्दावान है, उनका संरक्षण करने वाला ये बीज है। ये प्रगट कैसे हुवा?
इंद्र वृत्रासुर का युध्द! वृत्रासुर का पहली बार जाना हुवा और पहला युध्द हुवा। माँ चण्डिका के मुख से जो आशिर्वाद निकला इंद्र के लिए! वो था *क्रैम्*

जो पवित्र है, जो माँ का है, जो भक्तिमान है, जो अच्छा बनना है; उसके लिए क्रैम् बीज है। इसका इस्तेमाल कोई भी नहीं कर सकता!

हमारे शत्रुओं को पराभूत करता है।

श्री गरुड उवाच।
अथ ध्यानम् प्रवक्ष्यामि॥
श्रृणू सर्वांग सुंदर॥

गरुड जी बोल रहे है! किस को बोल रहे है! ये 'सर्वांग सुंदर' कौन है?

गरुड अमृत कुंभ लेकर आता है।
वो हमारे लिए भी अमृत लेकर आयेगा ही!

ऐसा गरुड! किसे बता रहा है? सर्वांग सुंदर कौन है? जो हनुमान जी को प्रिय है!

सर्वांग सुंदर याने त्रिविक्रम है! ये त्रिविक्रम का नाम है।
गरुड जी को गर्व होता है! उसका हरण करने के लिए!

मेरू पर्वत

शिव शक्ती का, एक दुसरे पर जो प्यार है; वो त्रिविक्रम के रुप में है। पर हनुमान जी अरुध्द है! उनका दर्शन कर के गरुड जी आते है।

सर्वांग सुंदर प्रेम ही होता है! गरुड जी, त्रिविक्रम जी को बताते है! सारे सामान्य भक्तों को समझ सकें इसलिए!

यत्कृतं देवदेवेन।  देवों के देव जो है! याने त्रिविक्रम को ही कहते है! जिसने यह स्तोत्र रचा है! उसी को फिर से ये स्तोत्र गरुड जी बता रहे है!

त्रिविक्रम जी 'बाल रुप' में बैठे थे!

जब तक हम 'छोटा रुप' पाते नहीं!

मसक समान रुप कपि धरिही

त्रिविक्रम जी ने श्रावण बाळ रुप में किया। हमें भी बाल भाव से ही करना चाहिए, तो ही ये 'फलेगा'

मेरू पर्वत पे ही बाल त्रिविक्रम को बताता है! गरुड को पता है; जिससे सुन के आ रहा हूँ, जिसे सुना रहा हूँ! वो त्रिविक्रम ही है!

जिस हनुमान जी की मै प्रार्थना कर रहा हूँ वो मेरे अधिदैवत भी है! उसके साथ साथ वो मेरे अंदर भी खेल रहे है। हर जिवित या अजिवित पदार्थ में महाप्राण ही है। उस महाप्राण को भी वो सामर्थ्य देंगे। वो हर एक के बदन में है ही!

पंचवक्त्रं महाभीमं।

ये पाँच मुख जिसके है! 15 नयन है जिसके! हनुमान जी को भी 3 आँखे है!
ये सर्वकामार्थ सिध्दिदम् है। सर्व प्रकार के पुरुषार्थ, सिध्द करनेवाला है।
हनुमान जी के हर मुख का तिसरा नयन है। हनुमान जी का दिखाया नहीं जाता! क्योंकी हनुमान जी रहते कहाँ है? आज्ञा चक्र में! तिसरी आँख कि जगह आज्ञा चक्र ही है। आज्ञा चक्र ही 'तिसरी आँख' है।हम जिसे Sixth Sense (छटवी इंद्री) कहते है।

तिसरी आँख... सब कुछ जान लेती है। ऐसी आँख हनुमान जी की है।

इस कवच का पठण करते समय या करने के बाद उसके मन की पुरी कि पुरी जानकारी, हनुमान जी को हो जाती है।

हनुमान जी का तिसरा नयन है। हमारे आज्ञा चक्र के साथ direct contact (सीधे संपर्क) करनेवाला है। हमारे आज्ञा चक्र के हनुमान का कनेक्शन बाहर के 'विराट' हनुमान से जुङ जायेगा। याने *अनलिमिटेड कनेक्शन सप्लाय* Free of Cost उसके लिये तुम्हारा मन हनुमान जी के लिये खुला करना पडेगा।
माँ के द्वार बंद नहीं है! हमारे दिल के दरवाजे बंद होते है। एकनाथ जी कहते है, "बये दार उघड"
माँ तू खोल दे! इस स्तोत्र के पठण करने के बाद हमारे दिल के दरवाजे, हनुमान जी खोल के ही रहेंगे!
ये तिसरा नयन, अभी यहाँ पाँच मुख है तो 15 नयन! 5 पंच ज्ञान चक्षू! याने हमारे पाँच कोष जो है! याने, हमारा *समग्र अस्तित्व* हमारे शरीर से लेकर अंत:करण चतुष्ठ! इसके दरवाजे खोलने से... हमारे पंचकोष... एक एक कोष का ये एक एक 'मुख स्वामी' है।
हनुमान जी को बोले, जो अस्त्र फेंकना चाहे वो फेंके और तोड दे मेरे दरवाजे को! तो उनका एक एक मुख; एक एक कोष का काबू लेनेवाली है! और जीवन में जब हनुमान जी राज करते है; तभी *रामराज्य* आता है।

हमारे जिंदगी में रामराज लाने का *ये सिक्रेट है*

तो ये हनुमान कवच प्यार से पढें! आप count (गिनती) भी मत करना! करते रहो, जितना हो सकें!

ये कवच जो 'नित्य पठण' करता है, उसके जीवन के अंतिम पल में 'Last पल में भी हमें हमारे सदगुरू की, हमारे 'दादी' की याद रहेगी! इसका 108% भरोसा, ये कवच देता है। हमारे सोते हुए भी, हमारे सपनों के राज में भी; 'राज' हनुमान जी का चलेगा।

जिनको भी डरावने सपने आते है, वो *पंचमुख हनुमान कवच* कहें!
अपने आप बंद हो जायेंगे! मेरे दिल के दरवाजे हनुमान जी के लिये खुलने ही चाहिए।
आपने कितना भी घृणास्पद कृत्य क्यूं ना किया हो; हनुमान जी आपको अपना बच्चा ही कहेंगे!

बाल रुप क्यों लिया है, त्रिविक्रम ने? क्यों की यह पठण करनेवाला, उनका बच्चा ही हो!

*आवो स्वामी, मेरे पंचकोषों का स्वामित्व* आपको अर्पण किया है! और अगर मन से नहीं किया, तो आप तोड के आ जाओ!

पुरी जिंदगी ऐसे हँसते हँसते चली जायेगी!

Friday, February 22, 2019

Bapu pravachan

http://www.aniruddhafriend-samirsinh.com/sadguru-shree-aniruddhas-pitruvachan-part-1-21st-february-2019/

Friday, January 18, 2019

Discourse 17/01/2019

*Bapuraya discourse* Thursday 17/01/2019

*हरि ओम श्रीराम अंबज्ञ नाथसंविध*

* 'हरि: ओम' हे gramatically correct
* आपल्या विकारांवर  control केल्यावरच  भगवंताकडे  जायचा विचार होऊ शकतो, असे सांगणाऱ्याकडे लक्ष देऊ नका
* *आद्यपिपांचा अभंग : 'षड्रिपू झाले बहू उपकारी अजातशत्रू मी झालो .. '*
* क्रोध आवश्यक आहे...अन्यायाशी लढाण्यासाठी.
* मोह नसेल तर काही मिळवण्यासाठी प्रयत्नच होणार नाहीत!
* या षडरिपुंचे मूळ रूप पवित्रच  आहेत
* ताप घालवन्यासाठी  माणसाला freezer मध्ये ठेवू शकतो का? त्याचप्रमाणे सर्व विकार घालवणे उचित नाही.  उचित प्रमाण हवे ... Not more not less
* त्याच प्रमाणे हे षड्रिपू  control मध्ये ठेवा zero करू नका.
* तुम्ही संत नाहीत, हे लक्षात ठेवा
* भक्ती भाव चैतन्यत सर्व control मध्ये राहते
* भगवंताने हे गुण उत्पन्न केले, त्यापासून आपण शिकावे म्हणून !
* सर्व मानवी मर्यादेत असले पाहिजे
* कोणाकडूनही चुका होऊ शकतात... अगदी मोठ्या पण
*वासना घालवायची असे सांगणारे मोक्षाची इच्छा धरतात,  मोक्ष प्राप्ती ही पण इच्छाच आहे
* *my daughters and sons,  सुधारायचय पण इतके पण मनाला कष्ट देऊ नका की मन मरूनच जाईल*  मन जिवंत राहिले पाहिजे
* माझ्यात दुर्गुण आहे, तो मला सुधारायचाय
* हा मंत्र गजर तुमच्या गुणांना मर्यादेत ठेवेल
* भक्त आहोत भक्त बनून राहायचंय
* आपल्या सगळे आपल्यापासूनच मिळणार आहेत, हा मंत्र गजर करून घेईल
* 'तो' तुमच्या आत बसलेला आहेच.  एकदा प्रेमाने नाम घेतले त्याच्या आत 'तो' आहेच
*हरि ओम*

*बापूराया talk after दर्शन*

*हरि ओम श्रीराम अंबज्ञ नाथसंविध*

* प्रपत्त्ती झाली आता. *प्रपत्त्तीचे  सांभार जिकडे कुठे बनेल, बनवताना 'तो' तिकडे येऊन 3दा हात फिरवतो.  म्हणून ते special tasty होत!*
* चखके भी देखता है वो
* प्रपत्त्तीचे  सांभार त्याने चाखून  बनवलेले असतें म्हणून ते त्याचा 'उष्टा प्रसाद' असते
* प्रपत्त्ती म्हणजे चण्डिकेला शरण जाऊन घेतलेली शरणागती...म्हणून ती पाठवते तिच्या पुत्राला, प्रपत्त्ती झालेल्या प्रत्येक घरात !
* *वर्षभरात एकदाच आपण नैवेद्य न अर्पण करता त्याचा प्रसाद आपल्याला मिळतो,  तो प्रपत्त्तीला !*
* पुढच्या वर्षीपासून सांभार बनवताना 'तो' तुमच्या सोबत आहे हे लक्षात ठेवा

हरि ओम

Thursday, January 17, 2019

Tulsipatra: Read online

A wonderful gift to all. Sadguru Shree Aniruddha's (Bapu) Agralekhs from Daily Pratyaksha now available online.

Website link - https://tulsipatra.in

The current series of Agralekhs is the Tulsipatra series wherein Bapu has been explaining each verse of the Sunderkaand. Bapu has been writing on the current verse 334 of Sunderkaand for over 5 or 6 yrs now. After covering serveral topics ranging from 'True history of Mankind', Kirat kaal, stories of Ganpati & Kartikeya and many more, the recent Agralekhs on Bhaktibhaav Chaitanya are just mesmerising, to say the least.

Being able to read these invaluable Agralekhs online is just another example of how everything is made simple for shraddhavans.

Saturday, January 12, 2019

स्वंभगवान त्रिविक्रमाचे भजन! (Swayam bhagwan Trivikram's bhajan)


11/01/2019
।। हरि ॐ।। ।। श्रीराम ।। ।। अंबज्ञ ।।
।। नाथसंविध् ।।

रामा रामा आत्मारामा
त्रिविक्रमा सद्गुरुसमर्था।।
सद्गुरुसमर्था त्रिविक्रमा
आत्मारामा रामा रामा।।

स्वयंभगवान त्रिविक्रमाच्या मंत्र गजरामध्ये श्रद्धावान समरस होत असताना सद्गुरु कृपेने भक्तिभाव चैतन्यात रमण्याचा आणखी एक मार्ग श्रीहरिगुरुग्रामला प्रकट झाला. तो मार्ग म्हणजे स्वंभगवान त्रिविक्रमाचे भजन!

जय त्रिविक्रम मंगलधाम।
श्रीत्रिविक्रम पाहि माम् ।।ध्रृ।।

शुद्ध ब्रह्म परात्मर राम।
श्रीमद् दशरथ नन्दन राम।
कौसल्यासुखवर्धन राम।
श्रीमद् अयोध्या पालक राम ।।१।।

त्र्यम्बककार्मुक भंजक राम।
दंडकवनजन पावन राम।
विनष्टसीतान्वेषक राम।
शबरीदत्तफलाशन राम।।२।।

हनुमत्सेवित निजपद राम।
वानरदूत प्रेषक राम।
हितकरलक्ष्मण संयुत राम।
दृष्टदशाननदुषित राम।।३।।

साकेतपुरीभूषण राम।
सकलस्वीय समानत राम।
समस्तलोकाधारक राम।
सर्वभवामयवारक राम।।४।।

भक्तिभाव चैतन्य भजन मालिकेतील हे पहिले भजन.

परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापूंच्या प्रत्यक्ष उपस्थितीत श्री. पौरससिंहानी जमलेल्या सर्व श्रद्धावानांना वरील भजन करण्यास शिकविले आणि प्रत्येक श्रद्धावानाने परमात्म्यास समर्पित होऊन भजन केलं.

भजन करताना श्रद्धावानाच्या मनाचा प्रवाह नम:कडे सुरू झाला होता.

भजन करताना प्रत्येकाचा भाव स्वयंभगवान त्रिविक्रम असणाऱ्या श्रीरामाच्या आणि श्री अनिरुद्धाच्या चरणांशी अर्पण होत होता आणि त्या चरणांशी घट्ट बांधून घेण्याची प्रेरणा सहजपणे प्राप्त होत होती.

सर्वसमर्थ असणारा स्वयंभगवान त्रिविक्रम म्हणजे साक्षात श्रीअनिरुद्धाचे सामर्थ्य श्रद्धावानांच्या सहजपणे लक्षात येत होते. त्या सामर्थ्याचा प्रवाह प्रत्येक श्रद्धावानाच्या मनाकडे जाऊ लागला.

जीवनातील अंतिम सत्य, जीवनातील खराखुरा आनंद आणि जीवनाचे परमेश्वरी मुल्य; हे सर्व काही स्वयंभगवान त्रिविक्रमाच्या भक्तिभाव चैतन्यातील भजनातून श्रद्धावानांना मिळत होते.

‘भजन’ शब्दाचा खरा अर्थ, ‘त्या’ परमात्म्याची सेवा. त्या सेवेचा पाठ पुन्हा एकदा कधीही न विसरण्यासाठी गिरविला गेला.

त्याच्या साक्षात दर्शनाची भूक क्षमविण्यासाठी हे भजन पुढील हजारो वर्षे चिरकाल श्रद्धावानांच्या जीवनात अधिराज्य करणार आहे.

भजनाचे शब्द त्यानेच प्रकट केले, भजनाचे शब्द त्यानेच उच्चारले, भजनाचे शब्द त्यानेच आमच्या कानात ओतले, भजनाचे शब्द त्यानेच आमच्या मनात-चित्तात स्थिर केले आणि त्याच भजनाचे शब्द आमच्या मूखातून-वाणीतून ऐकण्यासाठी ‘तो’च व्याकुळ झाला होेता.

आम्हाला काय मिळालं? सर्वांगसुंदर असणारं सर्व काही. पण स्वयंभगवानाचे भजन आमच्या वाणीतून ऐकताना ‘तो’ खूष झाला. आम्ही भक्तिभाव चैतन्याच्या सागरात आनंदाने बागडत असताना आमच्या वाणीतून निघालेल्या भजनाला ‘तो’ प्रतिसाद देत होता; नव्हे त्याने टाळ्या वाजवून आमचं कौतुक केलं.

गुरुवार दि. १० जानेवारी २०१९ ह्या दिवशी खऱ्या अर्थाने भक्तिभाव चैत्यन्याच्या भजनाचा शुभारंभ झाला असून पुढील अडिच हजार वर्षे हेच भजन आम्हाला तारणार आहे. आम्हाला स्वयंभगवान त्रिविक्रमाच्या अनिरुद्ध रूपाशी-अनिरुद्धाच्या कार्याशी जोडणार आहे.

खऱ्याअर्थाने रामराज्याच्या प्रवासामधील हा आणखी एक टप्पा; पण आम्हाला वाटतं की, हा रामराज्याचा जल्लोष!

`जय’ आणि `श्री’ ह्यातील फरक आम्हा श्रद्धावानांच्या लक्षात आला आणि ‘जय’ आणि ‘श्री’ असणाऱ्यांची कृपा आमच्या जीवनात सदैव आणण्याची ताकद भक्तिभाव चैतन्यातील ह्या भजनात आहे.

रामाची कृपा, रामाचे सामर्थ्य, रामाचे यश, रामाची भक्ती आमच्या जीवनात येण्यासाठी हे भजनच आम्हाला मार्गदर्शक ठरणार आहे.

अध्यात्म्यातील उचित ते सर्वकाही आम्हाला देण्याची क्षमता ह्या भजनात आहे म्हणून हे भजन परमात्म्याचं आवडतं आहे. कारण ‘त्या’ला माहित आहे की हे ‘भजन’ आपल्या श्रद्धावान बाळांनी मन:पुर्वक स्वीकारलं की त्यांच्यासाठी नव्व्याण्णव पावलं चालणं सोप्पं जातं; त्यांच्यावर कृपा करणं सहज शक्य होतं.

काल स्वयंभगवान त्रिविक्रमाच्या `राम’रूपातील भजनात तो स्वत: सहभागी झाला आणि आम्हालाही सहभागी करून घेतले. त्यामुळे काल आनंदाचा, भक्तीचा, प्रेमाचा जल्लोष होता म्हणूनच तो रामराज्याचा जल्लोष होता असं म्हणावसं वाटतं…

।। जय जगदंब जय दुर्गे ।।

।। हरि ॐ।। ।। श्रीराम ।। ।। अंबज्ञ ।।
।। नाथसंविध् ।।