हरि ॐ दि. 16/03/2017
बापूंचे पितृवचन
ह्या कवचामधे एक शब्द येतो. *श्री पंचमुख हनुमत विराट हनुमान देवता* विराट याने क्या?
विराट का मतलब क्या है! 'विराट' ये उपाधी; किसलिये और कहाँ दी जाती है?
विराट याने ऐसी कोई चीज, जितनी चाहें, खुद चाहें, स्वयं कि इच्छा से; जितनी चाहें, उतनी बढ सकती है! और किस दिशा में बढे य़ा ना बढे; ये भी उसकी स्वयं कि मर्जी से होता है!
इसलिये विराट को दिशा का; सीमा का बंधन नहीं होता!
जिसकी खुद अपनी सीमा होती है, वो 'विराट' होता है।
वो भी कैसी! कोई भी बुराई कभी विराट नहीं हो सकती! *राज* तो माँ चण्डिका का ही चलता है।
जो विराट है, वो सिर्फ 'पवित्र' ही होता है। जो पुर्ण रुप से, निष्कंलक रुप से पवित्र होता है!
ॐकार को जन्म देते समय, जो ताकत होती है; वो प्रसुती के लिये वास्तव में लायी जाती है। वो विराट नहीं कही जाती!
इस विश्व के उत्पन्न के लिये जितनी शक्ती आवश्यक होती है! उसके बाद जो रह जाती है; वह 'विराट' है! चाहें जितने विश्व और भी उत्पन्न कर सकती है।
यह पंचमुख हनुमान विराट है। याने इनका स्वरुप कैसा है! माँ कि वो शक्ती; जो सारे विश्व उत्पन्न कर के भी, रहती है!
ये विराट शक्ती, विश्व चलाने के लिये; संपुर्ण रुप से हर पल कार्यरत है।
माँ कि जो शक्ती विश्व में आ गयी, वो आ गयी है! गाडी बन गयी है! लेकिन उड चलने के लिये जो इंधन है;
हनुमान जी सारे के सारे विश्व को पॉवर सप्लाय करते है। इसलिये विराट कहा गया है।
ॐ श्री हनुमन्ताय
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपिस तिहूँ लोक उजागर
तिनो लोक! उसे प्रेरित करने वाली शक्ती विराट है।
जिनका विराट स्वरुप है; फिर भी हाथ जोडकर बैठे है! याने 'हमें हमेशा नतमस्तक होना चाहिए! मेरे जीवन का हर पल भगवान का है! ये हर रोज भगवान को बताना चाहिए! कम से कम 'दो बार'
हम जब भी भगवान को बोलते है! याने हममें जो भगवान का अंश है, उसे बताते है। हमारा मन जो है, वो बहुत चंचल होता है।
हम कुछ सोचते है! और दो मिनट में भुल जातें है। हमारी याददाश्त इतनी कमजोर होने का कारण! हमारा मन चंचल है।
इसलिए हमें बार बार बताते रहना है।
सुंदरकाण्ड कम से कम *साल में एक बार तो पढिये*
वहाँ क्या सिख पाते है! रामचंद्र और सीता, हनुमान जी को 'तात' बोलते है।
जो घर में श्रेष्ठ व्यक्ती है; उसे 'तात' कहते है।
ये परमात्मा भी उसे 'तात' कहते है! इतना वो विराट है। जब भगवान का स्वरुप, *अवतार* हो जाता है; तो वो भगवान का स्वरुप हमेशा कार्यरत होता है।
त्रिविक्रम 'कारणरुप' होता है!
राम, कृष्ण अपने मुल रुप में विराट है ही! लेकिन वसुंधरा पर कुछ कारण से आते है।
त्रिविक्रम और हनुमान जी; किसी रुप या अवतार में भी आयें; तो भी विराट ही रहते है
उनका कार्य भी विराट ही है। ये हनुमान जी, जब हनुमान के रुप में प्रगट हुए।
ये *सतयुग में भी* आता है! त्रेता, द्वापार में भी आता है! कलयुग में तो *है ही!*
वो पंचमुख हनुमान ही है! उनका विराट रुप, हमारे आकलन शक्ती के बस में होता है!
इस कवच को दिव्यता देनेवाला 'विराट हनुमान' है
पंचमुख याने *हर व्यक्ती के पंचप्राण, पंचेंद्रिय, कर्मेंद्रिय* इन सभी को सामर्थ्य देनेवाले है!
गलत सामर्थ्य नहीं, आपके लिये जितना आवश्यक है? उतना ही देनेवाला है।
किस दिशा में उसका बंधन नहीं है।
ये सबसे सुरक्षित है! हमारा बाळ, अगर गलत दिशा में गया, तो प्रॉब्लेम हो सकता है! गलत नहीं बन सकते! वो *विराट तत्व है*
ये विराटता, हमारे लिए वरदान बन के आती है। किसी भी इन्सान को; जो वरदान आता है; वो अगर शुध्द भक्ती या तपश्चर्या के लिए आया; तो उसमें अंतर होता है।
शुध्द भक्ती के लिये आते है, वो हनुमान जी का अंश होता है!
राम दुआरें, तुम रखवारें
परमात्मा का कौनसा भी अवतार क्यों ना हो! हर इन्सान तक पहुँचनेवाला कार्य, हनुमान करते है! इसलिए विराट है!
संरक्षण करनेवाला! माँ के गर्भ में होता है, वैसा! सारी बुराईयों से संरक्षण! और सारा भरण पोषण!
वो कवच!
इसलिय़े हनुमान जी को *विश्व योगिराज* भी कहते है।
हम पंचमुख हनुमान जी का कवच कहते है।
-हीं बीजं
याने इस कवच का बीज जो है, वो '-हीं' याने माँ का प्रणव! ये लज्जा बीज है।
ॐकार का जो महत्व है, वो ही इस -हीं का महत्व
लज्जा बीज याने ये गुढ बीज है। सारे Secrets of the World गुप्त वार्ता, तंत्र याने Techniques, सारे समिकरण, सुत्र जिसमें है वो ये '-हीं बीज'
इस कवच का बीज भी -हीं है! जिस कवच का बीज ही -हीम् है वो हमारे लिए क्या कुछ नहीं कर सकता!
क्रैम् अस्त्राय फट्
इति दिग्बंध:
ये *दिग्बंध*
ये *फट्* भी बीज मंत्र है। 'फट्' जो है, किसी भी चीज का तुरंत त्याग करने के लिए, विनाश करने के लिए जो आवाहन किया जाता है, उसका बीज है 'फट्'
ये विनाशकारी बीज है! स्वेच्छा के अनुसार है। जिनको मारना है; वो ही मरेंगे!
ये विध्वंसक शक्ती भी हनुमान जी को Specific है! Apt है!
अस्त्राय फट् इति दिग्बंध:
किसी का अस्त्र हम पर आने से पहले उसका विनाश हो!
अगर हम किसी गलत रास्ते पर जायें, तो उसका भी विनाश हो!
हम हमारे खुद के जीवन में झाँकेंगे, तो देखेंगे... हम गुस्से में कितने गलत शब्द बोल देते है!
ये जो हम हमारे जिंदगी में गलत कदम उठाते है; ये गलत अस्त्र भी! जो हमारी वजह से 'निकलता' है! उसके भी 'निकलने के' तुरंत बाद नाश हो जाए! यही दिग्बंध है इस कवच का! याने *आपको पवित्र सीमा में ही रखने वाला*
जो चाहता है, मेरे हाथ से गलती ना हो; तो *क्रैम् अस्त्राय फट् स्वाहा* आवश्यक है।
क्रैम् बीज जो है, इसे युध्द बीज कहते है। हमारे मन में खुद के साथ युध्द चलता है! घर में भी! सारे युध्दों का बीज क्रैम् है। ये युध्द बीज है!
लेकिन, किसी भी युध्द में जो सच्चे श्रध्दावान है, उनका संरक्षण करने वाला ये बीज है। ये प्रगट कैसे हुवा?
इंद्र वृत्रासुर का युध्द! वृत्रासुर का पहली बार जाना हुवा और पहला युध्द हुवा। माँ चण्डिका के मुख से जो आशिर्वाद निकला इंद्र के लिए! वो था *क्रैम्*
जो पवित्र है, जो माँ का है, जो भक्तिमान है, जो अच्छा बनना है; उसके लिए क्रैम् बीज है। इसका इस्तेमाल कोई भी नहीं कर सकता!
हमारे शत्रुओं को पराभूत करता है।
श्री गरुड उवाच।
अथ ध्यानम् प्रवक्ष्यामि॥
श्रृणू सर्वांग सुंदर॥
गरुड जी बोल रहे है! किस को बोल रहे है! ये 'सर्वांग सुंदर' कौन है?
गरुड अमृत कुंभ लेकर आता है।
वो हमारे लिए भी अमृत लेकर आयेगा ही!
ऐसा गरुड! किसे बता रहा है? सर्वांग सुंदर कौन है? जो हनुमान जी को प्रिय है!
सर्वांग सुंदर याने त्रिविक्रम है! ये त्रिविक्रम का नाम है।
गरुड जी को गर्व होता है! उसका हरण करने के लिए!
मेरू पर्वत
शिव शक्ती का, एक दुसरे पर जो प्यार है; वो त्रिविक्रम के रुप में है। पर हनुमान जी अरुध्द है! उनका दर्शन कर के गरुड जी आते है।
सर्वांग सुंदर प्रेम ही होता है! गरुड जी, त्रिविक्रम जी को बताते है! सारे सामान्य भक्तों को समझ सकें इसलिए!
यत्कृतं देवदेवेन। देवों के देव जो है! याने त्रिविक्रम को ही कहते है! जिसने यह स्तोत्र रचा है! उसी को फिर से ये स्तोत्र गरुड जी बता रहे है!
त्रिविक्रम जी 'बाल रुप' में बैठे थे!
जब तक हम 'छोटा रुप' पाते नहीं!
मसक समान रुप कपि धरिही
त्रिविक्रम जी ने श्रावण बाळ रुप में किया। हमें भी बाल भाव से ही करना चाहिए, तो ही ये 'फलेगा'
मेरू पर्वत पे ही बाल त्रिविक्रम को बताता है! गरुड को पता है; जिससे सुन के आ रहा हूँ, जिसे सुना रहा हूँ! वो त्रिविक्रम ही है!
जिस हनुमान जी की मै प्रार्थना कर रहा हूँ वो मेरे अधिदैवत भी है! उसके साथ साथ वो मेरे अंदर भी खेल रहे है। हर जिवित या अजिवित पदार्थ में महाप्राण ही है। उस महाप्राण को भी वो सामर्थ्य देंगे। वो हर एक के बदन में है ही!
पंचवक्त्रं महाभीमं।
ये पाँच मुख जिसके है! 15 नयन है जिसके! हनुमान जी को भी 3 आँखे है!
ये सर्वकामार्थ सिध्दिदम् है। सर्व प्रकार के पुरुषार्थ, सिध्द करनेवाला है।
हनुमान जी के हर मुख का तिसरा नयन है। हनुमान जी का दिखाया नहीं जाता! क्योंकी हनुमान जी रहते कहाँ है? आज्ञा चक्र में! तिसरी आँख कि जगह आज्ञा चक्र ही है। आज्ञा चक्र ही 'तिसरी आँख' है।हम जिसे Sixth Sense (छटवी इंद्री) कहते है।
तिसरी आँख... सब कुछ जान लेती है। ऐसी आँख हनुमान जी की है।
इस कवच का पठण करते समय या करने के बाद उसके मन की पुरी कि पुरी जानकारी, हनुमान जी को हो जाती है।
हनुमान जी का तिसरा नयन है। हमारे आज्ञा चक्र के साथ direct contact (सीधे संपर्क) करनेवाला है। हमारे आज्ञा चक्र के हनुमान का कनेक्शन बाहर के 'विराट' हनुमान से जुङ जायेगा। याने *अनलिमिटेड कनेक्शन सप्लाय* Free of Cost उसके लिये तुम्हारा मन हनुमान जी के लिये खुला करना पडेगा।
माँ के द्वार बंद नहीं है! हमारे दिल के दरवाजे बंद होते है। एकनाथ जी कहते है, "बये दार उघड"
माँ तू खोल दे! इस स्तोत्र के पठण करने के बाद हमारे दिल के दरवाजे, हनुमान जी खोल के ही रहेंगे!
ये तिसरा नयन, अभी यहाँ पाँच मुख है तो 15 नयन! 5 पंच ज्ञान चक्षू! याने हमारे पाँच कोष जो है! याने, हमारा *समग्र अस्तित्व* हमारे शरीर से लेकर अंत:करण चतुष्ठ! इसके दरवाजे खोलने से... हमारे पंचकोष... एक एक कोष का ये एक एक 'मुख स्वामी' है।
हनुमान जी को बोले, जो अस्त्र फेंकना चाहे वो फेंके और तोड दे मेरे दरवाजे को! तो उनका एक एक मुख; एक एक कोष का काबू लेनेवाली है! और जीवन में जब हनुमान जी राज करते है; तभी *रामराज्य* आता है।
हमारे जिंदगी में रामराज लाने का *ये सिक्रेट है*
तो ये हनुमान कवच प्यार से पढें! आप count (गिनती) भी मत करना! करते रहो, जितना हो सकें!
ये कवच जो 'नित्य पठण' करता है, उसके जीवन के अंतिम पल में 'Last पल में भी हमें हमारे सदगुरू की, हमारे 'दादी' की याद रहेगी! इसका 108% भरोसा, ये कवच देता है। हमारे सोते हुए भी, हमारे सपनों के राज में भी; 'राज' हनुमान जी का चलेगा।
जिनको भी डरावने सपने आते है, वो *पंचमुख हनुमान कवच* कहें!
अपने आप बंद हो जायेंगे! मेरे दिल के दरवाजे हनुमान जी के लिये खुलने ही चाहिए।
आपने कितना भी घृणास्पद कृत्य क्यूं ना किया हो; हनुमान जी आपको अपना बच्चा ही कहेंगे!
बाल रुप क्यों लिया है, त्रिविक्रम ने? क्यों की यह पठण करनेवाला, उनका बच्चा ही हो!
*आवो स्वामी, मेरे पंचकोषों का स्वामित्व* आपको अर्पण किया है! और अगर मन से नहीं किया, तो आप तोड के आ जाओ!
पुरी जिंदगी ऐसे हँसते हँसते चली जायेगी!
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